________________ 272 स्थावर स्थावर-नाड़ी स्थिति . जैन दर्शन और संस्कृति स्कन्ध कहलाता है। इसी प्रकार असंख्यात प्रदेशी, अनन्त प्रदेशी स्कन्ध होते हैं। संसारी जीवों का एक प्रकार जिनमें चलने-फिरने की क्षमता नहीं है। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु व वनस्पतिकाय के एकेन्द्रिय जीव अपने स्थान पर स्थित रहने के कारण स्थावर कहलाते हैं। त्रस-नाड़ी के अतिरिक्त लोक का भाग स्थावर नाड़ी कहलाता है। देखें-त्रस-नाडी। जब कर्म बंधते हैं तो उसी समय इनकी स्थिति (कालावधि) भी निर्धारित होती है, उसे “स्थिति" या स्थिति-बंध कहा जाता है। जितनी स्थिति होती है, उतने समय तक वे कर्म जीव के साथ रहते हैं, बाद में आत्मा से अलग हो जाते हैं। इसका अर्थ है “किसी एक अपेक्षा से”। यह अव्यय है, जो स्याद्वाद में प्रयुक्त होता है। अपने आपसे आविर्भूत, किसी अन्य के द्वारा बनाया हुआ नहीं। जो प्रत्यक्ष ज्ञान केवल आत्मानुभूति का ही विषय बन सकता है, वह स्वसंवेदन प्रत्यक्ष है। उसे दूसरों को अनुभव नहीं कराया जा सकता। बौद्ध दर्शन में प्रयुक्त पारिभाषिक शब्द जिसका अर्थ है-मोक्ष। जो किसी हेतु या तर्क द्वारा जाना जा सकता है / छोड़ने योग्य, अहितकर / देखें, उपादेय / स्यात् स्वयंजात . .. स्वसंवेदन प्रत्यक्ष हान हतुगम्य हेय 000