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जैन साहित्य : संक्षिप्त परिचय
२१७ हिन्दी साहित्य
विक्रम की दसवीं शताब्दी से जैन विद्वान् अपभ्रंश की ओर झुके। तेरहवीं शती में आचार्य हेमचंद्र ने अपने प्रसिद्ध व्याकरण सिद्ध-हेमशब्दानुशासन में इसका भी व्याकरण लिखा। उसमें उदाहरण-स्थलों में अनेक उत्कृष्ट कोटि के दोहे उद्धृत किए हैं। श्वेताम्बर और दिगम्बर, दोनों परम्पराओं के मनीषी इसी भाषा में पुराण, महापुराण, स्तोत्र आदि लिखते ही चले गए। महाकवि स्वयम्भू ने पद्मचरित लिखा। चतुर्मुखदेव, कवि रइधू, महाकवि पुष्पदंत के पुराण अपभ्रंश में हैं। योगीन्द्र का योगसागर और परमात्मप्रकाश संत-साहित्य के प्रतीक ग्रंथ हैं।
__ अनेक जैन आचार्य, मुनि और बहुश्रुत मनीषी नए-नए साहित्य का सृजन कर हिन्दी साहित्य भंडार को भर रहे हैं। तेरापंथ के आचार्यश्री तुलसी तथा अनेक मुनियों ने इस दिशा में अभूतपूर्व योगदान किया है। जैन आगमों को हिन्दी में व्याख्यायित करने का उनका संकल्प क्रियान्वित हो रहा है और साथ-साथ सामयिक विषयों पर शताधिक ग्रन्थ लिखे जा चुके हैं। आज भी मनीषी मुनि इस ओर गतिशील हैं। जैन ध्यान-योग की विलुप्त परम्परा का संधान करने वाले अनेक ग्रन्थ हिन्दी में प्रकाश स्तम्भ बन चुके हैं।
अभ्यास १. आगम-साहित्य का संक्षिप्त परिचय देते हुए बताएं कि इसे लिपिबद्ध
कब. क्यों और किसके द्वारा किया गया? २. आगम के व्याख्यात्मक साहित्य का परिचय दें। ३. प्राकृत के अतिरिक्त जैन साहित्य किन-किन भाषाओं में उपलब्ध हैं?
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