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________________ १८२ जैन दर्शन और संस्कृति यौवन और विवाह __बाल क्रीड़ा के बाद अध्ययन का समय आया। तीर्थंकर गर्भकाल से अवधि-ज्ञानी (अतीन्द्रिय-ज्ञानी) होते हैं। महावीर भी अवधि-ज्ञानी थे। वे पढ़ने के लिए गये। अध्यापक जो पढ़ाना चाहता था, वह उन्हें ज्ञात था। आखिर अध्यापक ने कहा-आप स्वयं सिद्ध हैं। आपको पढ़ने की आवश्यकता नहीं। यौवन आया। महावीर का विवाह हुआ। वे सहज विरक्त थे। विवाह करने की उनकी इच्छा नहीं थी। पर माता-पिता के आग्रह से उन्होंने विवाह किया। दिगम्बर परम्परा के अनुसार महावीर अविवाहित ही रहे। श्वेताम्बर साहित्य के अनुसार उनका विवाह क्षत्रिय कन्या यशोदा के साथ हुआ। उनके प्रियदर्शना नाम की एक कन्या हुई। उसका विवाह जमालि के साथ हुआ। महावीर के एक शेषवती (दूसरा नाम यशस्वी) नाम की दौहित्री (धेवती) थी। महाभिनिष्क्रमण वे जब अट्ठाईस वर्ष के हुए, तब उनके माता-पिता का स्वर्गवास हो गया। उन्होंने तत्काल श्रमण बनना चाहा पर नन्दिवर्धन के आग्रह से वैसा हो न सका। उन्होंने महावीर के घर में रहने का आग्रह किया। वे उसे टाल न सके। दो वर्ष तक फिर घर में रहे। जब जीवन उनका एकांत विरक्तिमय बीता। इस समय उन्होंने कच्चा जल पीना छोड़ दिया, रात्रि-भोज नहीं किया और ब्रह्मचारी रहे। तीस वर्ष की अवस्था में उनका अभिनिष्क्रमण हुआ। उन्होंने बारह वर्ष तक ध्यान-साधना की तथा शांत, मौन और दीर्घ तपस्वी जीवन बिताया। साधन और सिद्धि साधना के लिए एकांतवास और मौन—ये आवश्यक हैं। जो पहले अपने को न साधे, वह दूसरों का हित नहीं साध सकता। स्वयं अपूर्ण, पूर्णता का मार्ग नहीं दिखा सकता। भगवान् गृहस्थों से मिलना-जुलना छोड़ ध्यान करते, पूछने पर भी नहीं बोलते। कई आदमी भगवान् को मारते-पीटते, किन्तु उन्हें भी वे कुछ नहीं कहते । भगवान् वैसी कठोरचर्या में रम रहे थे जो सबके लिए सुलभ नहीं है।
SR No.006270
Book TitleJain Darshan Aur Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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