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“नमोत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं जाव संपाविउकामाणं" जयवन्ता वर्तमान काल में महाविदेह क्षेत्र में । विचरते हुए तीर्थंकरों को नमस्कार करके अपने धर्माचार्य जी को नमस्कार करता हूँ। साधु प्रमुख चारों तीर्थ को खमा कर, सर्व जीव राशि को खमा कर, पूर्व में जो व्रत आदरे हैं उनमें जो अतिचार लगे हों, वे सर्व आलोच के,पडिक्कम के, निन्द के, निशल्य होकर के सव्वं पाणाइवाइयं पच्चक्खामि, सव्वं मुसावायं पच्चक्खामि। सव्वं अदिन्नादाणं पच्चक्खामि। सव्वं मेहुणं पच्चक्खामि। सव्वं परिग्गहं पच्चक्खामि। सव्वं कोहं जाव मिच्छादसण-सल्लं अकरणिजं, जोग पच्चक्खामि। जावजीवाए, तिविहं तिविहेणं, न करेमि, न कारवेमि,
श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र