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________________ से हटाकर सद्गुणों के अधीन करे वह आवश्यक है। या इन्द्रिय और कषाय जिस साधना से पराजित किये जायें वह आवश्यक है। ___ अन्तर्दृष्टि साधक का लक्ष्य बाह्य पदार्थ नहीं होता। आत्म-शोधन ही उसकी साधना का लक्ष्य होता है । जिस साधना से आत्मा सहज व स्थायी सुख का अनुभव करे, कर्म मल को नष्ट कर, अजर अमर पद प्राप्त करे तथा सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र की अध्यात्म ज्योति जिससे जगमगाये उसे ही वह आवश्यक मानता है। अपनी भलों को देखकर एवं उसके संशोधनार्थ कुछ न कुछ क्रिया करना आवश्यक है। प्रस्तुत शास्त्र उस आवश्यक क्रिया का विधान करता है अतः इसका नाम आवश्यक सूत्र है। श्रमण हो, या श्रावक हो, दोनों के लिए प्रातः व सायंकाल आवश्यक करने का विधान है। प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर के श्रमणों के लिए यह अनिवार्य है कि वे नियमतः आवश्यक १. गुणानां वश्यमात्मानं करोतीति। २. ज्ञानादिगुणानाम् आसमन्ताद् वश्या इन्द्रिय-कषायादिभावशत्रवो यस्मात् तद् आवश्यकम्। -आवश्यक मलयगिरिवृत्ति ३. समणेण सावएण य, अवस्स कायव्वयं हवइ जम्हा। अन्नो अहो-निसस्स य, तम्हा आवस्सयं नाम ॥ -आवश्यकवृत्ति, गा. २, पृ. ५३
SR No.006269
Book TitleShravak Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushkarmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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