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________________ [दिशा दर्शन ] आज का युग भौतिकवादी है। मानव भौतिकवाद की ओर द्रुतगति से दौड़ रहा है तथा अध्यात्मवाद को विस्मृत हो रहा है। वह त्याग से भोग की ओर लपक रहा है। अहिंसा से हिंसा की ओर झुक रहा है । अपरिग्रह से परिग्रह की ओर कदम बढ़ा रहा है। वस्तुतः मानव का यह अभियान आरोहण की ओर नहीं अवरोहण की ओर है, उत्थान की ओर नहीं पतन की ओर है, विकास की ओर नहीं विनाश की ओर है। यही कारण है कि भौतिक दृष्टि से अत्यधिक उन्नति करने पर भी मानव का हृदय धड़क रहा है, उसके अन्तर्मानस में शांति की लहरें तरंगित नहीं हो रही हैं। जैनदर्शन मानव को अन्तर्दर्शन की प्रेरणा देता है । जैनदर्शन की प्रत्येक साधना अन्तर्दर्शन की साधना है । जो साधना अन्तर्दर्शन नहीं कराती वह साधना नहीं अपितु विराधना है। आवश्यक जैन साधना का प्रमुख अंग है। जो अवश्य ही किया जाय वह आवश्यक है। अथवा जो आत्मा को दुर्गुणों १. अवश्यकर्त्तव्यमावश्यकम् । श्रमणादिभिरवश्यम् उभयकालं क्रियत इति भावः। -आवश्यक मलयगिरिवृत्ति
SR No.006269
Book TitleShravak Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushkarmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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