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धन साधु धन साध्वी, धन धन है जिनधर्म। यह समाँ पातक टले, टूटे आठों कर्म ॥३॥
(यहाँ खड़े होकर दोनों हाथ जोड़कर निम्न पाठ उच्च स्वर से पढ़ें।).
क्षमापना पाठ आयरिए उवज्झाए, सीसे साहम्मिए कुलगणे य जे मे केई कसाया, सव्वे तिविहेण खामेमि॥१ सव्वस्स समण-संघस्स, भगवओ अंजलिं करिय सीसे। सव्वं खमावइत्ता, खमामि सव्वस्स अहयं पि॥२॥ सव्वस्स जीवरासिस्स, भावओ धम्म-निहिय-नियचित्तो। सव्वं खमावइत्ता, खमामि सव्वस्स अहयं पि॥३॥ _ श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र
श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र १११
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