SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुरु मित्र, गुरु मात, गुरु सगा, गुरु तात, गुरु भूप, गुरु भ्रात, गुरु हितकारी है। गुरु रवि, गुरु चन्द्र, गुरु पति, गुरु इन्द्र, गुरु देव दे आणन्द, गुरु पद भारी है । गुरु देत ज्ञान-ध्यान, गुरु देत दान मान, गुरु देत मोक्ष - स्थान, सदा उपकारी है। कहत है तिलोक रिख, भली भली देवे सिख, पल-पल गुरुजी को, वन्दना हमारी है ॥ X X X यह पाँच पद महामांगलिक हैं, महाउत्तम हैं, शरण लेने योग्य हैं, इस भव में, पर भव में, भवो भव में शरण होना । ( एक स्वर से निम्न दोहे बोलें) दोहा अनन्त चौबीसी जिन नमूं, सिद्ध अनन्ता क्रोड़ । केवलज्ञानी गणधरा, वंदूं बेकर जोड़ ॥ १ ॥ दो क्रोड़ केवल धरा, विहरमान जिन बीस । सहस्र युगल कोड़ी नमूं, साधु वंदूं निस दीस ॥२॥ श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र ११०
SR No.006269
Book TitleShravak Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushkarmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy