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संग्रह-सम्पदा) सहित हैं। उन आचार्य श्री१..... महाराज को मैं एक हजार आठ बार 'तिक्खुत्तो' के पाठ से वन्दना एवं नमस्कार करता हूँ तथा जानते-अनजानते किसी भी प्रकार की अविनय एवं आशातना हुई हो तो तीन करण और तीन योग से क्षमा चाहता हूँ।
सवैया गुण हैं छत्तीस पूर, धारत धरम उर, मारत करम क्रूर, सुमति विचारी है। शुद्ध सो आचारवन्त, सुन्दर है रूपकन्त, भण्या है सभी सिद्धान्त, वाँचणी सुप्यारी है। अधिक मधुर वैण, कोई नहीं लोपे केण, सकल जीवों का सेण, कीरति अपारी है। कहत है तिलोक रिख, हितकारी देत सिख, ऐसे आचारज ताकुं, वंदना हमारी है।
१. यहाँ अपने आचार्यश्री का नाम बोलना चाहिए।
श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र
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