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अचल अटल रूप, आवे नहीं भव-कूप, अनूप स्वरूप ऊप, ऐसे सिद्ध धारी है। कहत है तिलोक रिख, बताओ ए वास प्रभु, सदा ही उगते सूर, वंदना हमारी है।
__ नमो आयरियाणं नमस्कार हो, आचार्यों को। आचार्य महाराज कैसे हैं ? पाँच आचारज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, वीर्याचार, तपाचार पाले, पाँच महाव्रत पाले, पाँच इन्द्रिय वश करे, चार कषाय टाले, नव वाड सहित शुद्ध ब्रह्मचर्य पाले, पाँच समिति, तीन गुप्ति शुद्ध आराधे, इन छत्तीस गुणों से युक्त है। आठ सम्पदा (आचार-सम्पदा, श्रुतसम्पदा, शरीर-सम्पदा, वचन-सम्पदा, वाचना-सम्पदा, मति-सम्पदा, प्रयोग-सम्पदा,
श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र ।
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