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________________ ५० लाभ है कि यह मनुष्य में तितिक्षा भाव जगाता है। मानव जीवन बड़ा ही विचित्र है। कभी आपत्ति-विपत्तियों के काले कजराले बादल मँडराते हैं तो कभी सुख की सुरीली स्वर लहरियां झनझनाती हैं, कभी ऐसा भी होता है कि अन्य व्यक्ति व्यर्थ ही शत्रुता की गाँठ बाँध लेता है, अपना पुत्र ही शत्रु के समान आचरण करने लगता है, दुर्व्यसनों में फँस जाता है और लाख प्रयत्न करने पर भी व्यसनों को नहीं छोड़ता, घोर परिश्रम से उपार्जित संपत्ति को धूल के समान उड़ा देता है। यहाँ तक कि स्त्री भी नागिन के समान फुकारती है। सदाचारी और सरल स्वभावी पति पर भी विश्वास नहीं करती। संशय का नाग प्रतिपल उसके मनमस्तिक में विषभरी फुकार मारता रहता है। इन परिस्थितियों में सामान्य मानव विचलित हो जाता है। समझ ही नहीं पाता कि क्या उपाय किया जाय? वह निराशा के झूले में झूलने लगता है, उसे सारा संसार ही अंधकारपूर्ण दिखाई देने लगता है।
SR No.006268
Book TitleJain Dharm Ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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