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समत्व का क्षेत्र विशाल है और प्राणी मात्र के लिए इसकी उपयोगिता भी अधिक है। कर्म सिद्धान्त
कर्म, प्राणी की वृत्ति प्रवृत्ति, क्रियाप्रक्रिया से उत्पन्न उस ऊर्जा को कहा जाता है, जो प्राणी को अपने आवरण में ले लेती है, उसके साथ चिपक जाती है, दूध-पानी के समान एकमेक हो जाती है और योग्य समय अपना फल प्रदान करती है।
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प्राणी की शुभ प्रवृत्तियों से शुभ कर्मों का उपार्जन एवं संचय होता है और अशुभ प्रवृत्तियों अशुभ कर्मों का, और इनका फल भी शुभ और अशुभ के रूप में प्राणी को भोगना पड़ता है। कहा गया है
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सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णा फला हवंति । दुचिण्णा कम्मा दुचिण्णा फला हवंति ॥
यद्यपि अन्य दर्शनों ने भी कर्म सिद्धान्त को माना है और स्वीकार किया है कि मानव को अपने किये कार्यों का फल मिलता है। लेकिन उन्होंने फल प्रदान का उत्तरदायित्व ईश्वर को सौंपा है। साथ ही यह व्यवस्था भी