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हैं-मानसिक प्रदूषण, वचन सम्बन्धी प्रदूषण आदि। . मानसिक प्रदूषण विचारों-अशुभ विचारों से प्रसार पाता है। मानव अपने मन में यह समझता है कि मैंने किसी व्यक्ति के प्रति ईर्ष्या, क्रोध आदि आवेशों से प्रभावित होकर चिन्तन व आचरण किये तो इससे किसी अन्य को क्या मतलब? किसी का क्या बुरा हुआ ? यह तो मेरे तक ही सीमित है, मेरा निजी मामला है।
लेकिन ऐसे व्यक्ति भ्रम में हैं। इस संसार में निजी मामला किसी का होता ही नहीं। सभी जीव परस्पर एक-दूसरे से संस्पर्शित हैं और इसी कारण प्रभावित भी होते हैं। दूरस्थ आकाश के अन्य ग्रहों को भेजे जाने वाले स्पूतनिक-यान आदि किसी प्रकार के दृश्य तार आदि से वैधशाला के यंत्रों से जुड़े नहीं होते, फिर भी वैधशाला में बैठा वैज्ञानिक लैसर आदि किरणों के प्रयोग से उन यानों की गतिविधि-प्रत्येक हलचल पर नजर रखता है और यहाँ तक कि उनका मार्ग भी बदल देता है। उनकी मरम्मत भी कर देता है।