________________
१० हैं। इनकी अनेक संज्ञाएं हैं।
इन गुणों के माध्यम से जैन धर्म के जीवन-सन्देश को समझें और उसे जीवन में साकार करने का प्रयास करें।
- रत्नत्रय जैन धर्म ने सर्वाधिक महत्व सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन, सम्यक्चारित्र पर दिया है। ये तीनों आध्यात्मिक क्षेत्र में तो महत्वपूर्ण हैं ही; व्यावहारिक जीवन में भी इनका महत्व कम नहीं है, अपितु किसी अपेक्षा से अधिक ही माना जा सकता है। हमें इन तीनों का अध्यात्म साधना के क्षेत्र में ही नहीं, जीवन व्यवहार के क्षेत्र में भी उपयोग करना है। तभी हम इनकी महत्ता जान सकेंगे।
यों जैनदर्शन मोक्षवादी दर्शन है। कुछ विद्वानों के अनुसार यह दर्शन निवृत्तिप्रधान है। लेकिन उनका यह दृष्टिकोण एकांगी है।
इस धर्म ने निवृत्ति के साथ-साथ प्रवृत्ति को भी उचित महत्व दिया है। सच तो यह है कि निवृत्ति और प्रवृत्ति दोनों का ही समान महत्व