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________________ सहकर सफल होता है । बिना आग में तपे सोना कुन्दन नहीं होता, मिट्टी का घड़ा भी आग में पकने पर ही उपयोगी होता है । उसी प्रकार मनुष्य भी. विपत्तियों, असफलताओं और परिस्थितियों से संघर्ष करके, प्रतिकूलताओं से जूझकर, कष्टों को सहन करके अपने चरित्र को निखार सकता है। युवा वर्ग में आज सहनशीलता की बहुत कमी है । सहनशीलता के जीवन में दो रूप हो सकते हैं-पहला कष्टों में धैर्य रखना, विपत्तियों में भी स्वयं को सन्तुलित और स्थिर रखना तथा दूसरा रूप है-दूसरों के दुर्वचन सहन करना, किसी अनजाने या विरोधी ने किसी प्रकार का अपमान कर दिया, तिरस्कार कर दिया तब भी अपना आपा न खोना । स्वयं को सँभाले रखना और उसके अपमान का उत्तर अपमान से नहीं, किन्तु कर्तव्यपालन से और सहिष्णुता से देवें ।
SR No.006267
Book TitleJage Yuva Shakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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