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(५२) युवक एक कर्मठ शक्ति का नाम है जो काम करता है उसे समाज में भला-बुरा भी सुनना पड़ता है । शारीरिक कष्ट भी सहने पड़ते हैं और लोगों की आलोचना भी सुननी पड़ती है क्योंकि लोग आलोचना भी उसी की करते हैं जो कुछ करता है । जो निठल्ला बैठा है, कुछ करता ही नहीं उसकी आलोचना भी क्या होगी, अतः कार्यकर्ताओं की समाज में आलोचनाएँ भी होती हैं।
युवक क्रान्ति की उद्घोषणा करता है. परिवर्तन का बिगल बजाता है. समाज व राष्ट्र की जीर्ण-शीर्ण मान्यताओं को सुधारना, अन्धविश्वास की जगह स्वस्थ उपयोगी कार्यक्रम देना चाहता है और समाज में जागृति लाना चाहता है, इन सुन्दर स्वप्नों को पूरा करने के लिए उसे समाज के साथ संघर्ष भी करना पड़ता है, परन्तु ध्यान रहे, इस संघर्ष में कटुता न आवे, व्यक्तिगत मान-अपमान की क्षुद्र