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________________ _"एकता" तभी सुरक्षित रह सकती है, जब हम त्याग एवं समर्पण की भावना हो / यदि आप अपने स्वार्थ को ही साध्य मानेंगे, अपनी प्रभावना को ही प्रमुखता देंगे तो फिर दूसरों का क्या गोगा ? | एक-एक ईंट जुड़कर भव्य भवन बनता है, गदि कोई ईट अपने को सबसे बड़ी दिखाने का प्रयास करे या अपना स्वतंत्र अस्तित्व जताने की वेष्टा करे तो क्या वह उस भवन की सुन्दरता बढ़ा सकती है ? समुद्र में मिलकर हर बूंद अपना अस्तित्व मटा देती है, और बूंद समुद्र बन जाती है / संगठन में हर एक व्यक्ति स्वयं को समर्पित करता है और संगठन की अभिन्न कड़ी बन जाता है। - उपाचार्य देवेन्द्रमुनि काशकः श्रीतारक गुरु जैन ग्रन्थालय.उदयपुर
SR No.006266
Book TitleChaturmas Aatmullas Ka Parv
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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