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अनेक पाठकों ने अनेक बार मुझसे आग्रह किया है कि मैं इस प्रकार की छोटी-छोटी पुस्तकें लिखूं, जिन्हें गागर में सागर कहा जा सके और पाठक सुविधा अनुसार कहीं भी साथ में रखकर ज़ब फुर्सत मिले, तब पढ़ सकें ।
पाठकों की भावना को ध्यान में रखकर मैंने इस प्रकार के कुछ लघु निबन्ध लिखे जो कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक सार्थक सन्देश दे सकें ।
इस आयोजन में पूज्य गुरुदेव श्री उपाध्याय पुष्कर मुनि जी महाराज सा. की कृपा एवं प्रेरणा मेरी सफलता का मूल रहीं है ।
श्रीचंद जी सुराना "सरस" का सहयोग सदा स्मरणीय रहेगा ।
- उपाचार्य देवेन्द्रमुनि
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