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गुरु-पूर्णिमा-जैन श्रमणों का चातुर्मास आषाढी पूनम से प्रारम्भ होता है । और वैदिक परम्परा के अनुसार यह गुरु पूर्णिमा कहलाती है । द्वैपायन व्यास ऋषि का जन्म इसी दिन हुआ माना जाता है । गुरु ज्ञान-विज्ञान तथा आचार का आधार होता है । शिष्य गुरु- चरणों में समर्पित होकर ज्ञान-आचरण की शिक्षा प्राप्त करता है । गुरु अपने शिष्य को दिशा बोध देते हैं, उसके जीवन का निर्माण करते हैं ।
इस दृष्टि से गुरु-पूर्णिमा का भारतीय संस्कृति और मानव जीवन में जो महत्व है, उसे अवगणित नहीं किया जा सकता। गुरु पूर्णिमा धर्म-शिक्षा, गुरु-सेवा एवं विनय की ओर इंगित करती है ।
श्रावणी प्रतिपदा-चातुर्मास का दूसरा दिन है-श्रावणी प्रतिपदा, श्रावण कृष्णा
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