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________________ में बनाई जा सकती हैं, और उनका कार्यान्वयन भी किया जा सकता है।। यह तो चातुर्मास के लोकोपकारक रूप हैं, उद्देश्य हैं, किन्तु इसका सबसे बड़ा और प्रधान उद्देश्य है-धर्मजागरणा, धर्मउत्साह,आत्म-विशुद्धि,अध्यात्म-साधना । आत्म-साधनारूप अध्यात्म-विशुद्धि के लिये संयम एवं तप-जप की साधना सबसे महत्वपूर्ण साधना है । तप-जपसामायिक - सेवा सब इसीलिए किये जाते हैं कि आत्मा से कर्मों का मैल हटके उज्ज्वलता बढ़े। अशुभ भावों का त्याग और शुभ तथा शुद्ध भावो में रमण करना, कषायों-विषयों को छोड़कर आत्म-निरीक्षण-प्रक्षालन भी आध्यात्मिक साधना का एक अंग है । चातुर्मास काल में लौकिक प्रवृत्तियाँ (२३)
SR No.006266
Book TitleChaturmas Aatmullas Ka Parv
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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