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में बनाई जा सकती हैं, और उनका कार्यान्वयन भी किया जा सकता है।।
यह तो चातुर्मास के लोकोपकारक रूप हैं, उद्देश्य हैं, किन्तु इसका सबसे बड़ा और प्रधान उद्देश्य है-धर्मजागरणा, धर्मउत्साह,आत्म-विशुद्धि,अध्यात्म-साधना ।
आत्म-साधनारूप अध्यात्म-विशुद्धि के लिये संयम एवं तप-जप की साधना सबसे महत्वपूर्ण साधना है । तप-जपसामायिक - सेवा सब इसीलिए किये जाते हैं कि आत्मा से कर्मों का मैल हटके उज्ज्वलता बढ़े।
अशुभ भावों का त्याग और शुभ तथा शुद्ध भावो में रमण करना, कषायों-विषयों को छोड़कर आत्म-निरीक्षण-प्रक्षालन भी आध्यात्मिक साधना का एक अंग है । चातुर्मास काल में लौकिक प्रवृत्तियाँ
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