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पहलू हैं । कष्ट में पड़े प्राणी को सहायता देना, उसका दुःख दूर करना दया है तो अभय उस संकटग्रस्त प्राणी का संकट दूर करके उसे निर्भय बनाना है । दया के ये दोनों रूप Negative,Positive के समान हैं। जैसे नेगेटिव और पोजीटिव दोनों धाराओं का संबन्ध जुड़ने से विद्युत कार्यकारी होती है, उसी प्रकार दया की पूर्णता भी रक्षा और अभयदान-इन दोनों प्रवृत्तियों से होती है ।
तपःसाधना चातुर्मास का दूसरा उद्देश्य है । तप, उसको कहा जाता है, जिससे आठ प्रकार की कर्मग्रन्थियों का नाश होता है । साधारण भाषा में तप द्वारा सभी प्रकार के दुःख मिटते हैं, आत्मा शुद्ध-परिशुद्ध बनती है
"तवेण परिसुज्झइ ।" जैन शास्त्रों में १२ प्रकार का तप बताया गया है ।
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