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(४९) पाट-पाटला आदि भी स्वच्छ हों, निर्जीव हों, उनमें जीव राशि न हो ।
(२) क्षेत्र शुद्धि - वातावरण स्वच्छ और साफ हो, उपासना गृह, स्थानक आदि, निवास स्थान का कोई कक्ष जो पृथक हो, वायु एवं ध्वनि के प्रदूषण से रहित अथवा उद्यान आदि हो । लेकिन वहाँ क्षुद्रजीवों का उपद्रव न हो, अन्यथा डांस मच्छरों आदि की बाधा के कारण, साधना में मन स्थिर नहीं रह सकेगा ।
(३) काल शुद्धि - दिन अथवा रात्रि का ऐसा समय चुनना चाहिए, जब कोलाहल न हो अथवा कम से कम हो । काल शुद्धि की दृष्टि से ब्राह्म मुहूर्त का समय ग्रन्थकारों ने श्रेष्ठ बताया है, इस समय प्रकृति भी शांत रहती है, वायु भी स्वच्छ - ऑक्सीजनयुक्त ।
यद्यपि आज का औद्योगिक युग शोर और प्रदूषण का युग है; किन्तु फिर भी प्रातः के