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जहाँ तक बीजाक्षरों का संबंध है, इसमें सभी बीजाक्षरों का संयोजन हुआ है । अ, आ, इ, ई आदि महामंत्र में नियोजित हुए सभी वर्ण, इस दृष्टि से बीजाक्षर माने जाते हैं कि इन सबके अपने-अपने प्रभाव हैं ध्वनियाँ हैं, तरंगें हैं, संकेत हैं । जैसे- 'अ' वर्ण आत्मा में एकत्व का सूचक और शक्तिवर्द्धक है, साथ ही यह आकर्षण शक्ति - सामीप्यता का उत्पादक भी है । साधारण भाषा में भी किसी प्राणी को अपने समीप बुलाने के लिए 'आ, आ' शब्द का उच्चारण किया जाता है और वह प्राणी आकर्षित होकर समीप आ जाता है । इसी प्रकार 'अ, आ' आदि बीजाक्षरों की ताल, लय, घोष, आदि, जिस प्रकार इस महामंत्र में ये वर्ण संयोजित हैं, उसी के अनुसार जाप करने से अनेक लब्धियाँ (विशिष्ट शक्तियाँ) साधक के पास उसी प्रकार खिंची चली