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(१०) का वर्ण - संयोजन समुचित हो और साधक एकाग्रतापूर्वक, असीम निष्ठा और लगन के साथ स्वरों के उचित आरोह-अवरोह को ध्यान में रखकर इस मंत्र का दृढ़ विश्वास और श्रद्धा के साथ जाप करे ।
तभी यह स्थिति प्रत्यक्ष अनुभूत होती
है
मंत्रः परमोश्रेयो मननत्राणेह्यतो नियमात् ।
-मंत्र परम कल्याणकारी होता है, उसके मनन से - जप से निश्चित ही त्राण अथवा रक्षा होती है, इष्ट फल की प्राप्ति होती है । इसीलिए कहा गया है
जपात् सिद्धिः जपात् सिद्धिः जपात् सिद्धिर्न संशयः ।
मंत्र जप से अवश्य मंत्र की सिद्धि होती है, इसमें किसी प्रकार का संशय नहीं है ।