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सत्य यह है कि यह संसार जिसमें हम रहते हैं, प्रकम्पनों से भरा है । कहीं ध्वनि प्रकम्पन तो कहीं वर्ण प्रकम्पन । इनमें भी ध्वनि प्रकम्पन, अधिक और तीव्र वेग वाले हैं । शोर (noise) का शोर सर्वत्र व्यापक है। ये प्रकम्पन जब अपनी चरम सीमा पर पहुँचते हैं तो इसका वेग बहुत बढ़ जाता है । वैज्ञानिकों की भाषा में ध्वनि प्रकम्पन किरणें १ करोड़ मील प्रति सैकिण्ड के वेग से गति कर सकती हैं । इस स्थिति में इनसे प्रकाश की किरणें निकलने लगती हैं । तभी तो मंत्र - साधक को जब वह मंत्र की सिद्धि के समीप पहुँचता है तो प्रकाश दिखाई देने लगता है । उसका स्वयं का अन्तर् प्रकाश से ज्योतिर्मय हो जाता है । यह प्रकाश बाहरी नहीं होता, स्वयं की अन्तर ऊर्जा से ही निकलता है ।
लेकिन यह सब होता तभी है जब मंत्र