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ज्ञान । जिस प्रकार केवली भगवान ने तत्वों का स्वरूप बताया है, उसी प्रकार उन्हें जानना, सत्य को समझना ।
आत्मा भी एक तत्व है, उसका यथार्थ ज्ञान करना; आत्मिक गुणों और शक्तियों को जानना सम्यक्ज्ञान है ।
आत्मज्ञान का अर्थ बहुत व्यापक है, आत्मा की सम्पूर्ण शक्तियों का, आत्मा के अनन्त गुणों का बोध करना, उन गुणों को प्रकट करने का उपाय जानना, यह आत्मज्ञान या सम्यक्ज्ञान है ।
व्यक्ति जब बाह्योन्मुखी ज्ञप्तिक्रिया - ज्ञान की प्रवृत्ति को अन्तर्मुखी बना लेता है, राग-द्वेष आदि का विवर्जन करके आत्मगुणों के चिन्तन-मनन, स्वाध्याय (अपनी आत्मा का ही अध्ययन) में लीन - तल्लीन कर लेता है, उस स्थिति को ज्ञानसामायिक कहा
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