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व्यवहार में ला सके । यदि निष्काम कर्म की वृत्ति मानव अपना सके तो संसार के द्वन्द्वों से वह काफी हद तक अप्रभावित रह सकता है ।
भ. महावीर का समता योग
भगवान महावीर ने अमूर्च्छाभाव की प्रेरणा दी है । इसी का नाम है - समभाव"सम मणइ जो तस्स सामाइयं होई".... सभी स्थितियों में जो सम-मन रहता है उसको ही सामायिक होती है । इसको ही समत्व योग कहा है ।
भगवान महावीर द्वारा बताये गये समता योग का अभिप्राय है - राग-द्वेष की, क्रोध - मान-माया लोभ आदि कषायों की अल्पता तथा द्वन्द्वातीत होकर आत्मस्थ . होना ।
यह सत्य है कि संसारावस्था में राग-द्वेष
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