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वह उसे बाहरी परिवेश, भौतिक चकाचौंध में खोज रहा है; ठीक उसी तरह जैसे मृग कस्तूरी की सुगन्ध से आकर्षित होकर उसे पाने के लिए बावला सा बना इधर-उधर भटकता रहता है, भोला हिरन नहीं जानता कि कस्तूरी तो मेरी नाभि में ही है । इसी तरह मानव भी भूल गया है कि शांति, सुख तो उसके अन्तर् में ही हैं; बाहर कभी नहीं मिल सकते; फिर भी मृगतृष्णा के वशीभूत होकर मृगमरीचिका की ओर दौड़ रहा है ।
एक लघु रूपक है
ईश्वर ने जब मनुष्य को उत्पन्न करके सृष्टि में भेजा तो उसके पाँवों में गति भर दी, हाथों में क्रियाशीलता, मस्तिष्क में विचारशक्ति तथा हृदय में सुख, शांति, संतोष और कोमल करुणामयी भावनाएं । हृदय कोमल था इसलिए इसे छाती के नीचे
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