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जीवन शांत था, किन्तु ५० वर्ष से जो अर्थ युग का प्रारम्भ हुआ है, उसने जीवन को अनिश्चयता की स्थिति में डाल दिया है, जीवन की, भविष्य की सुरक्षा, असुरक्षा में बदल गई है । इसी कारण चिन्ताओं में भी अत्यधिक वृद्धि हो गई है ।
स्थिति यहाँ तक आ पहुँची है कि मानव के जीवन का प्रत्येक पल चिन्ताओं से घिर गया है।
तो, आज मानव अपनी इस असह्य चिन्ताग्रस्त स्थिति से त्राण पाना चाहता है, इन दुर्विकल्पों और दुश्चिन्ताओं से मुक्त होना चाहता है । इसके उपाय वह उन पुस्तकों-साहित्य में खोजता है, जो इन्हीं विषयों पर आकर्षक नामों से प्रचारित होती हैं । जब उनसे उसकी चिन्ताएँ नहीं मिटती तो ट्रेन्कुलाइजर्स का प्रयोग करने लगता है
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