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हुआ ? सेठजी ने देखा-मोहन सकुशल आ गया.......... धीरे-धीरे सब सामान्य हुआ......... __ तो भविष्य की चिन्ता ऐसी जहरीली नागिन है कि क्षणभर में प्रसन, हंसते हुए मनुष्य को रुला देती है । स्वस्थ को बीमार कर देती है । भावी की आशंकाएँ, अनहोनी, दुश्चिन्ताएँ मनुष्य को डसती रहती हैं।
तथ्य यह है कि इस प्राणी जगत में मानव ही ऐसा प्राणी है जो चिन्ताओंदुश्चिन्ताओं से आकुल-व्याकुल रहता है । पशु-पक्षी जगत को इस प्रकार की कोई चिन्ता ही नहीं। . मानव की चिन्ताएँ आधुनिक युग में, इस भागमभाग के युग में अत्यधिक बढ़ गई हैं । आज से १००-५० वर्ष पहले जीवन में चिन्ताएँ अधिक नहीं थीं, सामान्यतया
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