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रहता ह । मनावज्ञानिक शब्दावली में "मानव अपनी भूतकालीन स्मृतियों का भार ढोता रहता है ।'
ये स्मृतियाँ सुखपूर्ण क्षणों से भी सम्बन्धित होती हैं और दुःखद क्षणों से भी । जब भी स्मृति पटल पर वे दुःखपूर्ण अप्रिय अनचाहे क्षण चित्रपटल के समान मस्तिष्क के समक्ष आते हैं तो मानव उदास हो जाता है, हताशा उस पर सवार हो जाती है, वह अपने आपको मायूस अनुभव करने लगता है; वर्तमान का सुख भी अतीत की अप्रिय स्मृतियों में लुप्त हो जाता है ।
उस समय मानव को आवश्यकता होती है - समत्व की । समभाव की । अनासक्ति की । मानव को उस समय उन स्मृतियों से लगाव का प्रयत्न छोड़ देना चाहिए । वह उन स्मृतियों के प्रति माध्यस्थ्य भाव रखे,
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