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(५५) जीवन को मशीन जैसा बना दिया । ८-८ घंटों की तीन पालियों में काम होने लगा। इसके परिणामस्वरूप मनुष्य रात्रि-भोजन के लिए विवश हो गया । इस विवशता ने आदत का रूप ले लिया। अब तो संसार भर में और भारत में भी यही दशा है । रात्रि- भोजन का प्रचार बढ़ता ही जा रहा है। इससे नींद का समय भी घट गया, रात को भोजन करने पर पाचन में भी देरी होती है, फिर अच्छी नींद भी नहीं आती । इस कारण मनुष्य का शरीर थका-थका, पेट भारी, मन अशांत, चिड़चिड़ा और शरीर अशक्त सा रहने लग जाता है ।
इस प्रकार चाहे धार्मिक दृष्टि से विचार किया जाय अथवा स्वास्थ्य की दृष्टि से, रात्रि भोजन हानिकारक ही है। आहार शुद्धि के साथ भावना का योग भी :
जैन आचार-विचार के अनुसार भक्ष्या