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के बाद चाहे जैसी स्वादिष्ट वस्तु उन्हें दे दो, प्रायः वे खाते नहीं हैं । यह उनका प्राकतिक विवेक समझ लें या कदरत का नियम समझ लें: किन्त समझदार मनष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो प्राकृतिक भोजन को भी स्वादिष्ट संस्कारित बनाकर खाना चाहता है और स्वाद के वश में वह भूख से भी ज्यादा खा जाता है । अधिक मात्रा में खाया हुआ भोजन जहर है । अमृत भी विष बन जाता है। ____ कहावत है-स्वाद करे बर्बाद । स्वाद के लिए खाया हुआ आहार न स्वास्थ्यप्रद होता है, न मन को प्रसन्नता प्रदान करता है । कुछ क्षणों का जीभ का स्वाद बाद में अनेक प्रकार की तकलीफें पैदा करता है।
मनुष्य असहज (एब्नोर्मल) हो जाता है, वह न तो ठीक से काम कर पाता है, न ही आराम । अत्यधिक मिर्च-मसाला वाला, गरिष्ठ भोजन, तामसिक आहार, शरीर व मन को सुखप्रद नहीं होता, वह सिर्फ कुछ