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चरना कह देवें तो भी चलेगा । क्योंकि जिस भोजन के लिए कोई उद्देश्य नहीं, भोजन सामग्री के विषय में किसी प्रकार का विवेक नहीं, न स्वास्थ्य का ध्यान है, न ही धर्म, कर्म का, ऐसा भोज्य अत्यन्त तामसिक व पाशविक भोजन है ।
शरीर को स्वस्थ, मन को फुर्तीला, क्रियाशील और नीरोग रखने की दृष्टि से भोजन करना - मानवीय भोजन है, यह विवेकपूर्ण है तथा मानव सभ्यता तथा स्वास्थ्य के अनुकूल भी है ।
तीसरी श्रेणी है स्वाद के लिए - खाना । यह प्रवृत्ति अधिकतर मनुष्य में ही पाई जाती है । पशु प्रायः उतना ही खाता है जितने से उसका पेट भर जाये । पेट भरने के पश्चात् उसके सामने चाहे जैसी बढ़िया भोजन-सामग्री डाल दें तो वह सूंघकर छोड़ देगा पर खायेगा नहीं। छोटे शिशुओं में भी यह प्रवृत्ति देखी जाती है, वे तब तक खाते हैं जब तक पेट में भूख होती है, पेट भरने