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मोक्ष प्राप्ति के लिए आत्मा को सम्यग्ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की आराधना आवश्वक
ज्ञान से आत्मा भावों (सर्ग . द्रव्य-पर्यायतत्वों) को जानता है, दर्शन से उन पर श्रद्धा (विश्वास) करता है, तथा चारित्र और तप से कर्मों का क्षय करके शुद्ध परिशुद्ध हो जाता है ।
आत्मा स्वभावतः दर्शन, ज्ञान, चारित्र, अनन्त सुख-वीर्य आदि अनेक गुणों का आगार और उज़गमन स्वभाव वाला है।
कर्मों का सम्पूर्ण रूप से क्षय होते ही आत्मा अग्निशिखा के समान सीधा ऊपर की ओर गमन करता है, लोकाग्र भाग में, जहाँ सिद्धशिला है, वहाँ अवस्थित हो जाता है और शाश्वत एवं अव्याबाध सुख में लीन हो जाता है।
आत्मा की यह अवस्था शाश्वत है, सदाकाल रहने वाली है।
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