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निर्जरा का सर्वप्रमुख हेतु तप है । तप के दो भेद हैं- (१) बाह्य और (२) आभ्यन्तर ।
बाह्य तप वे हैं जिनका प्रभाव बाहर दिखाई देता है । यह छह हैं -- ( १ ) अनशन, (२) ऊनोदरी (३) भिक्षाचर्या (अथवा वृत्तिपरिसंख्यान), (४) रसपरित्याग, (५) कायक्लेश और (६) प्रतिसंलीनता ।
आभ्यन्तर तप हैं - (१) प्रायश्चित्त, (२) विनय, (३) वैयावृत्य, (४) स्वाध्याय, (५) ध्यान और (६) व्युत्सर्ग | इन बारह प्रकार के तपों से विशिष्ट कर्मनिर्जरा होती है ।
६. मोक्ष तत्व
मोक्ष, आत्मा का चरम लक्ष्य है और जैनदर्शन द्वारा कथित अन्तिम तत्व भी है ।
मोक्ष वह स्थिति है, जिसे प्राप्त करने के बाद आत्मा को पुनर्जन्म नहीं लेना पड़ता, वह संसार परिभ्रमण के चक्र से छूट जाता है ।
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