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द्रव्य पूजा में हिंसा का प्राधान्य या अहिंसा का? ...49
का निर्माण किया जा रहा हो तो प्रथम मत का ही अनुसरण करना चाहिए।
शंका- बाजार में बेचने पर भी निर्माल्य द्रव्य की यथोचित राशि तो प्राप्त नहीं होती अत: द्रव्य पूजा के स्थान पर उतनी राशि भंडार में डाल दी जाए तो ज्यादा उचित नहीं है?
समाधान- श्रावक के द्वारा जिनालय में द्रव्य अर्पण करने का हेतू केवल देव द्रव्य की वृद्धि ही नहीं है अपितु उसका मुख्य ध्येय त्याग एवं उल्लास भाव का वर्धन है। द्रव्य अर्पण करने से जो भाव विशद्धि होती है वह भंडार में पैसा डालने से नहीं हो सकती। ऐसा करने पर तो अक्षत, फल आदि पूजाओं का महत्त्व एवं अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। ___ द्रव्य की गुणवत्ता हो सकती है किन्तु पैसे की गुणवत्ता कैसे निश्चित की जाए। हर बात में पैसे का उपयोग होने से आम जनता को भक्ति अनुष्ठान भार रूप लगने लगते हैं तथा भावों में भी न्यूनता आ जाती है। इन सब अपेक्षाओं को ध्यान में रखते हुए हर स्थान पर देव द्रव्य वृद्धि को महत्त्व देना उचित नहीं है।
इसके स्थान पर प्रतिमाह प्राप्त निर्माल्य को चढ़ाएं अथवा नकरे के आधार पर श्रावकों को दे देना चाहिए और श्रावक वर्ग उसे दीन-दुखियों में बाँट सकता है। इससे देवद्रव्य की भी हानि नहीं होगी तथा अनुकंपा दान का भी लाभ श्रावकों को प्राप्त हो सकेगा।
शंका- बरास पूजा और इत्र पूजा अलग-अलग है या दोनों किसी एक पूजा के ही अंग है?
समाधान- बरास पूजा और इत्र पूजा दोनों चंदन पूजा के अंतर्गत समाविष्ट होते हैं। यह सुगंधी द्रव्यों के विलेपन करने का मूलभूत विधान है।
शंका- भगवान की चंदन पूजा करनी चाहिए या केसर पूजा? . समाधान- विलेपन पूजा का रूढ़ नाम चंदन पूजा है। चंदन पूजा का मूल अर्थ है सुगन्धित द्रव्यों द्वारा परमात्मा का विलेपन करना। इसमें सभी सुगन्धित द्रव्यों के मिश्रण करने का विधान है। केशर, चंदन, ब्रास, कस्तूरी आदि अनेक द्रव्यों का मिश्रण कर विलेपन तैयार किया जाता है। मौसम के अनुसार उसमें केशर, चन्दन आदि की मात्रा निश्चित की जाती है। अत: केशर और चंदन पूजा दोनों एक ही है अत: किसी एक को करने का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता।