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48... शंका नवि चित्त धरिये! जैनों के घरों एवं गृह-मन्दिरों की संख्या घटती जा रही है। अणहिलपुर पाटन में जहाँ 11वीं सदी के समय 500 घर-मंदिर थे वहाँ आज मात्र 30 घर मंदिर शेष रह गए हैं।
नित्य प्रक्षाल के कारण मन्दिरों के कार्य बढ़ गए हैं इस कारण पुजारी एवं कर्मचारियों की संख्या में भी वर्धन हुआ है उनके वेतन हेतु चढ़ावों की संख्या भी बढ़ रही है। प्रक्षाल जल को यत्र-तत्र डालने से जीव हिंसा एवं आशातना की संभावना बढ़ गई है। प्रक्षाल हेतु बासी दूध या पैकेट के दूध का प्रयोग भी होने लगा है। व्यवस्थित प्रक्षाल आदि न होने से मूर्तियों के पत्थर जल्दी खराब होने लगे हैं। अनेक मंदिरों में तो सर्योदय से पर्व ही प्रक्षाल क्रिया हो जाती है जिसके लिए रात्रि में ही पानी की बाल्टियाँ भरकर रख देते हैं।
सर्दियों में कई बार बिना स्नान किए ही पुजारी प्रक्षाल आदि क्रिया सम्पन्न कर लेता है। पहने हुए वस्त्रों में ही पुजारी एवं कर्मचारी वर्ग मूल गर्भगृह में चले जाते हैं। इससे मंदिरों एवं अधिष्ठायक देवों का प्रभाव न्यून होता जा रहा है।
___ कई तीर्थों में प्रतिमाओं की अधिकता के कारण पुजारी केवल गीला कपड़ा मूर्तियों पर फेर देता है।
वर्तमान की इन भयावह स्थितियों को देखते हुए श्रावक वर्ग को जागृत होकर कोई ठोस निर्णय अवश्य लेना चाहिए।
शंका- मंदिर में चढ़ाए गए अक्षत, फल आदि निर्माल्य द्रव्यों का क्या करना चाहिए?
समाधान- निर्माल्य द्रव्य के विषय में दो मत प्रचलित है। प्रथम मत के अनुसार निर्माल्य द्रव्य को बाजार में बेचकर प्राप्त राशि से देवद्रव्य की वृद्धि की जा सकती है। अन्य मतानुसार यह द्रव्य पुजारी को दिया जाता है। प्रथम मत का समर्थन सभी आचार्य करते हैं। _. मुनि पीयूषसागरजी म.सा. के अनुसार यदि पूर्व परम्परा से निर्माल्य द्रव्य पुजारी को दिया जाता है तो इसमें अब विक्षेप नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से उनके मन में सेवा आदि के भाव कम हो सकते हैं तथा वे मंदिर के कार्यों में भी ढिलाई बरत सकते हैं। निर्माल्य से प्राप्त 25-30 हजार की राशि की अपेक्षा अजैनों की संतुष्टि एवं सहकार मंदिर सुरक्षा हेतु अधिक आवश्यक है, अन्यथा चोरी आदि से लाखों का नुकसान हो सकता है। यदि नूतन जिनालय