SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ करिए जिनदर्शन से निज दर्शन ... 25 एक पंचेन्द्रिय जीव की हिंसा के लिए जिन क्रूर भावों की आवश्यकता होती है उसमें शुभ भावों का होना असंभव है । जल - पुष्प आदि एकेन्द्रिय जीवों में भावों को अभिव्यक्त करने अथवा प्रतिकार करने की शक्ति नहींवत होती है। अतः उनकी हिंसा में भाव इतने क्रूर नहीं बनते। वहीं बकरा एक पंचेन्द्रिय जीव है। मृत्यु की कल्पना मात्र से वह भयभीत हो जाता है। मृत्यु साधनों को सामने देखकर उनसे बचने का प्रयास करता है। चिल्लाता है, चिखता है । उस मार्मिक माहौल में भी यदि किसी के मन में करूणा के भावों की उत्पत्ति नहीं होती तो उसको धर्म कैसे माना जा सकता है ? तदुपरान्त जैन धर्म में द्रव्य पूजा को प्रत्येक साधक के लिए आवश्यक नहीं माना गया है। वह तो मात्र उन गृहस्थों के लिए है जो पूरा दिन सांसारिक निमित्तों से जीव हिंसा में संलग्न रहते हैं। एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा कदम-कदम पर करते हैं। उसमें भी अच्छे निमित्त एवं भावों की शुद्धता के साथ उन जीवों की हिंसा के भाव मन में नहीं होते। इसी के साथ पूजा सम्बन्धी कार्यों में पूर्ण विवेक एवं उपयोग भी रखा जाता है, इस कारण यह कार्य पाप के स्थान पर पुण्य बंध में हेतुभूत बनते हैं। जिस व्यक्ति के एकेन्द्रिय जीव की हिंसा का भी त्याग हो, मन के परिणाम से बिगड़ते हो उनके लिए द्रव्य पूजा का भी निषेध शास्त्रों में प्राप्त होता है। इसीलिए साधु के लिए द्रव्य पूजा निषिद्ध है। पूजा शंका- भक्ति के भावों से कर्म निर्जरा होती है, तब पत्थर की प्रतिमा को देखकर प्रभु भक्ति के भाव कैसे उत्पन्न हो सकते हैं? समाधान- यदि प्रतिमा को पत्थर मानकर पूजा की जाए तो प्रभु भक्ति के भाव कदापि उत्पन्न नहीं हो सकते। यह एक व्यवहारगत सत्य है कि जब तक हम किसी द्रव्य में अपनेपन या श्रद्धाभाव का आरोपण नहीं करते तब तक उसके प्रति कोई भाव उत्पन्न नहीं होते। जैसे हमारा राष्ट्रीय ध्वज अन्य देश वालों के लिए मात्र एक कपड़े का टुकड़ा है अतः उसके प्रति आदर, सम्मान या देशभक्ति के भाव उनमें नहीं उमड़ते। पर उसी तिरंगे को राष्ट्र ध्वज के रूप में सर्वोपरि स्थान देने वाले भारतीय लोग उसकी आन-बान-शान के लिए अपने प्राण भी खुशी से न्यौछावर कर देते हैं। जबकि वह एक निर्जीव वस्त्र का टुकड़ा
SR No.006260
Book TitleShanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy