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________________ 6... शंका नवि चित्त धरिये! समाधान- जिन प्रतिमा को वंदन-नमस्कार करते समय जिनेश्वर भगवान को ही नमस्कार किया जाता है इसलिए दोनों भिन्न नहीं है। भावों से जिसे नमस्कार किया जाता है उसी को वंदन किया हुआ माना जाता है। जैसे कि जब हम महाविदेह में विराजित सीमंधर स्वामी को वंदन करते हैं तो उन्हीं को वंदन होता है, रास्ते में आने वाले पेड़-पौधे, घर, पर्वत आदि को नहीं। जब हम किसी साधु को नमस्कार करते हैं तो उनके शरीर को नहीं, उनके जीवन को वंदन करते हैं। यदि शरीर को वंदन किया जाए तो दीक्षा से पहले वंदन क्यों नहीं किया जाता? यदि कोई यह कहे कि यह शरीर रूपी पुद्गल द्रव्य साधु का ही है तो फिर मूर्ति भी वीतराग परमात्मा की ही है। अत: जिस प्रकार मुनि की काया को वंदन करने से मुनि को वंदन होता है वैसे ही वीतराग परमात्मा की मूर्ति को वंदन करने से साक्षात वीतराग परमात्मा को ही वंदन होता है। __शंका- निराकार भगवान की उपासना ध्यान द्वारा हो सकती है तो फिर मूर्ति मानने का क्या कारण? समाधान- मनुष्य के मन की यह ताकत नहीं कि वह निराकार भगवान की उपासना कर सके। इन्द्रियों से ग्राह्य वस्तु अथवा देखी और सुनी हुई वस्तुओं का ही मनुष्य विचार कर सकता है। उसके अतिरिक्त वस्तुओं की कल्पना उसके मन में नहीं आ सकती। जैसे कि जिसने लता मंगेश्कर का मात्र नाम सुना हो पर उसके बारे में न जानता हो और न ही उसे कभी देखा हो वह उसकी कल्पना कैसे कर सकता है। उसी प्रकार जिसने साक्षात या प्रत्यक्ष रूप से जिनबिम्ब को देखा ही नहीं है वह परमात्मा का ध्यान कैसे कर सकता है? निराकारी सिद्धों का ध्यान करते हुए भी लाल रंग के ज्योति की कल्पना ध्यान में आलंबन के हेतु से ही की जाती है। अतिशय ज्ञानियों के अतिरिक्त कोई भी सिद्धों के निराकार स्वरूप का ध्यान नहीं कर सकता। यदि कोई यह कहे कि हम मानसिक मूर्ति की कल्पना कर लेंगे तो उसके लिए भी द्रव्य मर्ति का आलम्बन आवश्यक है। मानसिक मूर्ति की कपोल कल्पना का परिणाम तो मात्र ध्यान रहित अवस्था ही हो सकती है। ___ समवसरण में तीर्थंकर परमात्मा तो मात्र पूर्व दिशा में ही मुख करके बैठते हैं शेष दिशाओं में तो प्रतिबिम्ब के रूप में प्रतिमा की ही स्थापना की जाती है। इससे भी चित्त की एकाग्रता के लिए मूर्ति की आवश्यकता सुसिद्ध हो जाती है।
SR No.006260
Book TitleShanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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