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2... शंका नवि चित्त धरिये ! तैयार किया जाता था। उसकी तीव्र सुगंध से आकृष्ट होकर रात्रि में सर्पादि विषैले जन्तुओं का उपद्रव या कोई अमंगल न हो इस हेतु तिलक मिटाने का विधान था। वर्तमान में प्रयुक्त द्रव्य में वह प्राकृतिक शुद्धता एवं उत्कृष्टता नहींवत है अत: तिलक लगा भी रहे तो कोई दोष नहीं है।
शंका- श्रावक परमात्मा के सामने तिलक लगा सकता है?
समाधान- तिलक यह बहुमान का प्रतीक है। श्रावक तिलक लगाकर जिनाज्ञा को धारण करते हैं तथा श्रावकत्व का बहुमान करते हैं। यह लोक व्यवहार एवं विनय गुण की मर्यादा है कि बड़ों के सामने छोटों को अपना बहमान नहीं करना चाहिए। परमात्मा का स्थान गृहस्थ श्रावक से बहत ऊँचा है अत: परमात्मा के आगे पर्दा करके ही तिलक लगाना चाहिए।
शंका- प्रतिदिन परमात्मा की आंगी करनी चाहिए?
समाधान- आंगी-आभूषण आदि चढ़ाकर तीर्थंकर परमात्मा की राज्य अवस्था प्रदर्शित की जाती है। चैत्यवंदन करते समय अवस्था त्रिक का चिंतन करते हुए पिण्डस्थ अवस्था के अन्तर्गत राज्यावस्था का भी ध्यान किया जाता है। अंग रचना उसी का एक स्वरूप है। अत: उस स्वरूप की अभिव्यक्ति के लिए आंगी करनी चाहिए। परंतु वर्तमान में आंगी का बढ़ता प्रचलन अवश्य चिंतनीय है। अधिकतर मंदिरों में मात्र प्रक्षाल के समय ही आंगी उतारी जाती है। इससे परमात्मा के मूल वीतराग स्वरूप के तो दर्शन ही नहीं हो पाते, अत: पर्व दिनों में परमात्मा की विशेष अंग रचना एवं सामान्य दिनों में भी संध्या के समय अंग रचना करनी चाहिए।
शंका- एक लोगस्स के स्थान पर चार नवकार गिनने से श्वासोश्वास का प्रमाण अधिक हो जाता है?
समाधान- श्वासोश्वास परिमाण का कायोत्सर्ग करते हुए लोगस्स सूत्र को 'चंदेसु निम्मलयरा' या ‘सागर वर गंभीरा'... तक बोलने का शास्त्रोक्त विधान है पर नवकार मंत्र अधूरा गिनने की समाचारी नहीं है। तीन नवकार गिनने पर परिमाण पूर्ण नहीं होता अत: एक लोगस्स के स्थान पर चार नवकार गिने जाते हैं। यह शास्त्रोक्त मान्यता होने से इसमें कोई दोष भी नहीं है। परिमाण अधिक होने पर दोष युक्त श्वोसोच्छवास की गणना नहीं की जाती।
शंका- सामूहिक आराधना क्यों की जाए?