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________________ अध्याय-1 सामूहिक आराधना क्यों की जाए? शंका- चैत्यवंदन विधि का प्रारम्भ कब हुआ? समाधान- जिनशासन की स्थापना होने के पश्चात गणधर चौदह पूर्व एवं द्वादशांगी की रचना करते हैं। इसी के अन्तर्गत आवश्यक सूत्र की भी रचना होती है। चैत्यवंदन विधि का समावेश आवश्यक सूत्र में ही हो जाता है अत: शासन स्थापना के दिन से ही चैत्यवंदन विधि प्रारम्भ हो जाती है। शक्रस्तव (णमुत्थुणं) चैत्यवंदन का मुख्य सूत्र है। इसे शाश्वत सूत्र भी माना जाता है। इस दृष्टि से चैत्यवंदन को एक शाश्वत विधि भी कह सकते हैं। शंका- चैत्यवंदन से पूर्व साथिया क्यों बनाते हैं? समाधान- साथिया, यह अक्षत पूजा के रूप में परमात्मा की द्रव्य पूजा है। प्राचीन काल में तो परमात्मा के समक्ष अष्टमंगल का आलेखन किया जाता था, परंतु वर्तमान में यह विधान स्वस्तिक या नंद्यावर्त्त आलेखन तक ही सीमित रह गया है। भाव पूजा रूप चैत्यवंदन से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है। द्रव्य पूजा भाव पूजा से पूर्व की जाती है अत: साथिया चैत्यवंदन से पूर्व बनाया जाता है। शंका- घर मंदिर में परमात्मा का अवग्रह कितना होना चाहिए? समाधान- श्राद्धविधि प्रकरण के अनुसार "गृहचैत्यादौ तु हस्तहस्तार्द्धमानात्" गृह चैत्य में एक हाथ या आधे हाथ का अवग्रह रखना चाहिए। गृह मंदिर छोटे होने से संघ मंदिर के समान अवग्रह रखना कठिन है। शंका- दर्शन करते समय श्रावक-श्राविका कहाँ खड़े रहें? समाधान- पुरुषों को परमात्मा के दाहिनी तरफ तथा महिलाओं को बायीं तरफ खड़े रहने का विधान है। प्रभु के दर्शन करते समय जघन्य से नौ हाथ, उत्कृष्ट से साठ हाथ और मध्यम से नौ से साठ हाथ तक दूर खड़े रहना चाहिए। शंका- रात्रि में तिलक लगा रहे तो क्या दोष है? समाधान- पूर्व काल में शुद्ध कस्तूरी, केशर आदि द्रव्यों से चंदन रस
SR No.006260
Book TitleShanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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