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________________ देवी-देवताओं की उपासना के मुख्य घटक ...91 पालन में दृढ़ थे। परन्तु वे धर्मानुयायी होने के साथ राज्यशासक भी थे। ऐसी स्थिति में निरपेक्ष दृष्टि से राज्यवासियों के अपने-अपने धर्म वर्धन में सहायक बनना उनका कर्त्तव्य था। दूसरी बात उस समय में विरोधी परम्पराओं के द्वारा जैन मंदिरों को खंडित करने आदि का भय सदा रहता था। ऐसे में स्वधर्म की रक्षा एवं उन्नति में बाधा न आए इसलिए अन्य परम्परा वालों को शांत एवं संतुष्ट रखना आवश्यक था। अतः देश-काल- परिस्थिति के अनुसार कार्य करना मिथ्यात्व का पोषण नहीं है। शंका- श्री घंटाकर्ण महावीर सम्यग्दृष्टि देव है ऐसी प्रचलित मान्यता है परंतु कहीं-कहीं उन्हें मिथ्यादृष्टि भी माना है ? सत्यता क्या है ? समाधान- श्री घंटाकर्ण यह मिथ्यादृष्टि देव है। इसका समर्थन करते हुए शास्त्रों में विविध उल्लेख प्राप्त होते हैं। जैन परम्परा का इतिहास, भाग - 3, पृ. 58-86 में निम्न वर्णन प्राप्त होता परिणाणसिणं सुमिणे विज्जा सिट्ट करेइ अन्नस्स । अहवा आइंखिणिआ घंटिमसिठ्ठ परिकहेइ ।।1312 ।। वृत्ति - यत्स्वप्नेऽवतीर्णया विद्यया विद्याधिष्टात्रया देवतया शिष्टं कथितं सद् अन्यस्मै पृच्छकाय कथयति। अथवा 'आइंखणिआ' डोम्बी तस्याः कुलदैवतंघण्टिकयक्षो नाम स्पृष्टः सन् कर्णे कयायति साऽत्र तेन शिष्टं कथितं सद् अन्यस्मै पृच्छकाय शुभाऽशुभाय यत् परिकथयति एवं प्रश्न - प्रश्न: ।।13121 (बृहत् कल्पसूत्र, भा. 25, पृ. 403, 404) गीतार्थ जैनाचार्यों द्वारा घंटाकर्ण वीर के अजैन देव होने के निम्न प्रमाण दिए गए हैं • अभिधान चिंतामणि में आचार्य हेमचन्द्र देवकांड में वर्णित जैन देवों में घंटाकर्ण का नाम उल्लेखित नहीं किया है अपितु देवकांड में नंदीश शब्द की व्याख्या में एक उद्धरण श्लोक दिया है। पंडित व्याडि ने महादेव के गणों के जो नाम बताए हैं उसमें कर्ण अंत वाले अनेक नाम हैं। आचार्य श्री ने उसी में से एक श्लोक उद्धृत किया है। गोपालो ग्रामणीमालु (मायु) र्घण्टाकर्णकरन्धमौ कार्य (अभिधान चिंतामणि कोष, देवकांड श्लो. 124 की व्याख्या, पं.
SR No.006260
Book TitleShanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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