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अध्याय-11 देवी-देवताओं की उपासना के मुख्य घटक
शंका- अनिच्छापूर्वक या लोक व्यवहार में हनुमान, साई बाबा आदि के मन्दिर जाने से भी मिथ्यात्व का पोषण होता है?
समाधान- यदि हम पाक्षिक या सांवत्सरिक अतिचारों का चिंतन करें तो सम्यक्त्व के पाँच अतिचारों का जब वर्णन आता है तो उसमें मिथ्यादृष्टि की प्रशंसा या मिथ्यादृष्टि के परिचय को तथा दाक्षिण्यता से उनके धर्म को मानना भी सम्यक्त्व को दूषित करने वाला कहा गया है। एक बार लगने वाले अतिचारों की उपेक्षा करने से वह हमारी प्रवृत्ति ही बन जाती है और फिर मूल से ही सम्यक्त्व का नाश हो जाता है।
दाक्षिण्यतावश भी ऐसे मंदिरों में जाने से अन्य लोगों को मिथ्यात्व समर्थन का अवसर प्राप्त होता है। अत: दर्शनार्थ या भ्रमणार्थ भी ऐसे मंदिरों एवं तीर्थों में नहीं जाना एवं विवेक पूर्वक ऐसी प्रवृत्तियों से दूर रहना ही आत्मार्थी के लिए हितकर है। __शंका- यदि मिथ्यात्वी देवी-देवताओं के मंदिर जाने से भी सम्यक्त्व दूषित होता है तो राजा कुमारपाल, वस्तुपाल,तेजपाल आदि अनेक जिनधर्मानुयायियों द्वारा अन्य मतावलंबियों के मंदिर आदि कैसे बनवाए गए? उनका सम्यक्त्व इससे दूषित नहीं हुआ?
समाधान- यह पहले भी कह चुके हैं कि प्रत्येक क्रिया परिस्थिति सापेक्ष की जाती है। मिथ्यात्वी देवी-देवताओं के मंदिर में भक्ति-श्रद्धा अथवा दाक्षिण्यता वश जाने से हमारे भीतर कहीं न कहीं उनके प्रति पूज्य भाव उत्पन्न हो जाते हैं। जो स्वयं संसार के चक्रव्यूह में फसे हैं वे किसी अन्य को मुक्ति का मार्ग कैसे दिखा सकते हैं अत: हमारी आत्मा के पतन एवं संसाराभिमुखी होने की संभावना बढ़ जाती है।
राजा कुमारपाल आदि अपनी परम्परा के प्रति पूर्ण समर्पित एवं नियम