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अध्याय-9
अंजनशलाका प्रतिष्ठा में बढ़ते आयोजन कितने प्रासंगिक ?
शंका- किन प्रतिमाओं का अंजन विधान हो सकता है ? समाधान - अतीत, वर्तमान या भविष्य में जो आत्माएँ केवलज्ञान प्राप्त कर चुकी हैं या करने वाली हैं उनकी अंजनशलाका हो सकती है। जैसे कि शंखेश्वर पार्श्वनाथ की प्रतिमा एवं गिरनार मंडन श्री नेमिनाथ भगवान की प्रतिमा या भरत चक्रवर्ती द्वारा स्थापित 24 तीर्थंकर की प्रतिमाओं का पूजन उनके केवलज्ञान प्राप्ति से पूर्व का उदाहरण है । इनका पूजन आदि भाव निक्षेप की अपेक्षा से किया जाता है। अतः भावी तीर्थंकरों का अंजन एवं पूजन शास्त्र सम्मत है।
शंका- प्रतिमा का निर्माण होने के कितने दिन बाद अंजनशलाका हो जानी चाहिए।
समाधान- प्रतिष्ठा षोडशक प्रकरण, दर्शनशुद्धि प्रकरण, धर्मसंग्रह आदि ग्रन्थों के अनुसार प्रतिमा का निर्माण होने के बाद दस दिन के अन्तराल में उसका अंजन विधान कर देना चाहिए। अन्यथा उसमें दुष्ट देवों का वास हो सकता है।
शंका- अंजनशलाका एवं प्रतिष्ठा के स्थान अशुचि रहित क्यों होने चाहिए?
समाधान- अंजनशलाका आदि शुभ अनुष्ठान अशुचि रहित स्थानों में करने का समर्थन प्रायः सभी आचार्य करते हैं। यहाँ अशुचि रहित स्थान का तात्पर्य प्रतिष्ठा क्षेत्र के चारों दिशाओं की सौ-सौ हाथ तक की भूमि को गन्दगी आदि से रहित करना है। इसका कारण यह है कि अशुद्ध स्थानों में देवीदेवताओं का आगमन नहीं होता और ऐसे अनुष्ठानों में देवी-देवताओं की उपस्थिति अनिवार्य है अतः स्थान शुद्धि आवश्यक है ।