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कैसे बचें विराधना से? ...83
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चाहिए। नित्य उपयोगी वस्त्र या अन्यों के द्वारा प्रयुक्त वस्त्र का उपयोग पूजा समय नहीं करना चाहिए।
शंका- श्रावक को कहाँ-कहाँ पर तिलक लगाना चाहिए?
समाधान- दर्शनार्थी या पूजार्थी ललाट, कंठ, हृदय एवं नाभि पर तिलक कर सकते हैं। जिनाज्ञा के पालन हेतु ललाट पर, परमात्मा के गुणगान हेतु सुस्वर प्राप्ति के लिए कंठ पर भाव विशुद्धि के लिए हृदय पर एवं श्वासोच्छावास की निर्मलता के लिए नाभि पर तिलक करना चाहिए। श्रावकों को दीपक की लौ के समान बादाम के आकार का एवं महिलाओं को बिन्दी के समान गोल तिलक लगाना चाहिए।
शंका- वीतराग परमात्मा एवं गुरु भगवन्तों के दर्शनार्थ जाते समय साफा-पगड़ी आदि पहन सकते हैं ?
समाधान- गुरु महाराज आदि के पास जाते समय साफा-पगड़ी आदि के त्याग का कोई विधान देखने में नहीं आया है। आरती आदि के समय मन्दिर में साफा पहनाया जाता है। अतः इसमें कोई दोष नजर नहीं आता। शंका उत्पन्न हो सकती है कि शास्त्रों में राजा द्वारा मुकुट त्याग का वर्णन क्यों किया गया है ? इसका समाधान यह है कि राजा के लिए मुकुट, छत्र आदि के त्याग का विधान विनय की अपेक्षा से किया गया है। राजा को नरपति या श्रेष्ठ पुरुष माना जाता है। मुकुट आदि उसकी श्रेष्ठता के प्रतीक हैं। परमात्मा के समक्ष सेवक बनकर जाना चाहिए। राजा भले ही इस लोक का स्वामी है किन्तु परमात्मा के सामने सेवक के समान है अतः उसे राजचिह्नों का त्याग करके मन्दिर में जाना चाहिए । लेकिन सामान्य रूप से साफा आदि पहनकर परमात्मा के दरबार में जा सकते हैं।
शंका- पूजा के लिए धोती - दुपट्टे का ही विधान क्यों है ?
समाधान - सीले हुए वस्त्र पसीना आदि आने से दुर्गंधयुक्त हो सकते हैं जिससे आशातना लगती है। सीले हुए वस्त्र का अर्थ है टुकड़ों को जोड़ना जबकि परमात्म पूजा के लिए अखंड वस्त्रों का विधान है क्योंकि हम परमात्मा के समान पूर्ण एवं अखण्ड होना चाहते हैं उत्तरासंग धारण करना श्रावकत्व एवं विनय गुण का सूचक है। इसके द्वारा जीव रक्षार्थ प्रमार्जना भी की जा सकती है। इसी के साथ बिना सिले वस्त्र में नाप (Size) आदि की भी समस्या नहीं रहती ।