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________________ कैसे बचें विराधना से? ...79 में शुद्ध घी के दीपक एवं कुएँ आदि के शुद्ध जल का भी जयणापूर्वक उपयोग करने का विधान है। नल के पानी का प्रयोग प्रक्षाल आदि के लिए होने के साथ-साथ मन्दिरों की सफाई, बरतन आदि धोने एवं नहाने के लिए भी अजयणापूर्वक होने लगा है। जिन मन्दिरों में बाथरूम की व्यवस्था होती है वहाँ पूजा करने वालों की अपेक्षा दूसरे लोग अधिक नहाते हुए नजर आते हैं। जब कुँए आदि से पानी निकाला जाता था तो व्यक्ति आवश्यकता अनुसार ही उसका उपयोग करता था क्योंकि उसे निकालने के लिए उसे मेहनत करनी पड़ती थी । नलों से आती अनवरत पानी की धारा ने उसके उपयोग की मर्यादा समाप्त कर दी है। जहाँ एक बाल्टी से काम हो सकता है, वहाँ तीन बाल्टी पानी गिराया जाता है। मन्दिरों की सफाई में भी असीमित जल का प्रयोग होता है। मन्दिरों में लाइटों का प्रयोग प्रारंभ होने के कारण दीपकों का प्रयोग नहींवत हो गया है। लाईट चली जाए तो Inverter या Generator आदि की सुविधा भी लाईट जलाने हेतु रखी जाती है । कई बार अनावश्यक लाईटें जलती रहती है। इन लाईटों के कृत्रिम प्रकाश में मूर्तियों का लावण्य एवं तेज न्यून हो रहा है। इसी के साथ वातावरण में गर्मी, अशुद्धता आदि बढ़ती जा रही है। अनेकशः छोटे-छोटे जीव लाईट पर आकृष्ट होकर मृत्यु को प्राप्त करते हैं। लाईट के द्वारा मन्दिर परिसर में निरंतर छः काय जीवों की हिंसा होती रहती है। लाइटों के बाद अब पंखों का भी प्रवेश मन्दिरों में हो गया है। अतः मन्दिरों में लाईट एवं पानी के नल आदि का प्रयोग न होना ही अधिक औचित्यपूर्ण है। शंका- महंगाई के जमाने में यदि घी की जगह बिजली का प्रयोग किया जाए तो क्या दोष? इससे देवद्रव्य की ही तो वृद्धि होगी ? समाधान - सर्वप्रथम तो मन्दिर में दीपक आदि के लिए देवद्रव्य की राशि का प्रयोग हो ही नहीं सकता। दीपक आदि श्रावक को स्व द्रव्य या साधारण द्रव्य से करने चाहिए। दूसरी बात खर्च कम करने के लिए हिंसक साधनों का प्रयोग कदापि उचित एवं मान्य नहीं है। हिंसा का प्रतिपादन करके खर्चा कम करने का विधान जैन शास्त्रों में नहीं है। महंगाई बढ़ने पर भी जब घर के खाने-पीने, सुख-सुविधाओं में कोई कमी नहीं करते तो फिर मात्र मन्दिरों में ही डालडा घी या हल्की Quality के घी की
SR No.006260
Book TitleShanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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