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________________ 78... शंका नवि चित्त धरिये! को अधिक प्रगाढ़ बना देता है। पूर्वकाल में साधक लोग तपश्चर्या-साधना आदि करके अशुभ की उदीरणा करते थे, यदि जिनपूजा करते हुए अशुभ कर्म उदय में आ रहे हैं तो यह विशिष्ट कर्म निर्जरा के क्षण हैं' ऐसा जानकर समस्थिति रखनी चाहिए। ___ अत: यह सुसिद्ध है कि जिनपूजा उपसर्गों का कारण नहीं अपितु अशुभ के क्षय का सोपान है। शंका- मन्दिर में रखे हुए वस्त्रों से पूजा कर सकते हैं या नहीं? समाधान- जैन शास्त्रों के अनुसार पूजा हेतु श्रावक को सामर्थ्य अनुसार उत्तम प्रकार के वस्त्रों का उपयोग करना चाहिए तथा उपयोग के बाद उन्हें शुद्ध स्थान पर रखना चाहिए। मन्दिरों में रखे गए वस्त्र जहाँ-तहाँ फेंक दिए जाते हैं तथा अनेक लोगों द्वारा पहने हए होने से उनके पसीने आदि से अशुद्ध भी हो जाते हैं। अत: ऐसे वस्त्रों का उपयोग यथासंभव नहीं करना चाहिए। व्यवस्थापकों को मन्दिर में रखे गए पूजा वस्त्रों की शुद्धि एवं उन्हें व्यवस्थित रखवाने का ध्यान रखना चाहिए। दूसरे व्यक्ति के वस्त्र पहनने हो तो बनती कोशिश धोकर पहनने चाहिए। शंका- अविधि पूर्वक पूजा करने पर आंशिक लाभ होता है या नहीं? समाधान- डॉक्टर के द्वारा दी गई दवाई यदि विपरीत रीति से ली जाए या निषिद्ध द्रव्य के साथ उसका सेवन किया जाए तो वह लाभकारी होगी या हानिकारक? English के पेपर में Maths के उत्तर लिख दें तो क्या आप पास हो सकते हैं? जैसे तैसे भी Mobile या Computer के बटन दबाने से कोई कार्य किया जा सकता है? यदि नहीं तो फिर अविधिपूर्वक पूजा करने से लाभ कैसे मिल सकता है? आशातना नहीं हो इस प्रकार की पूजा करने से ही लाभ होता है। मनोभावों की तरतमता के आधार पर ही फल की तरतमता होती है। विपरीत मनोभावों से विपरीत परिणाम ही प्राप्त होते हैं अर्थात लाभ के स्थान पर हानि ही होती है। शंका- मन्दिर में दीपक के स्थान पर लाईट तथा नल का प्रयोग औचित्यपूर्ण है? समाधान- आजकल अधिकांश मन्दिरों में विविध प्रकार की आधुनिक लाईटों का तथा नल के पानी का प्रयोग होने लगा है। जबकि शास्त्रानुसार मंदिरों
SR No.006260
Book TitleShanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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