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________________ अध्याय-8 कैसे बचें विराधना से? शंका- स्नात्र जल कहाँ लगाना चाहिए? और इसका महत्त्व क्यों है? समाधान- सामान्यतया परमात्मा की पूजा के बाद न्हवण जल को मस्तक आदि अंगों पर लगाने का विधान है। बृहद शान्ति के अनुसार शान्ति कलश के जल को 'शान्तिपानीयं मस्तके दातव्यं' तथा धर्मसंग्रह में शान्ति जल को प्रत्येक अंग पर लगाने का उल्लेख है। व्यवहारत: नाभि के ऊपरी अंगों पर न्हवण जल लगाया जाता है। यह परमात्मा के प्रति श्रद्धा एवं बहुमान का प्रतीक है। जिनबिम्ब से स्पर्शित जल पवित्र परमाणुओं द्वारा सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। इसके द्वारा हमारे अंगों में परमात्मा के निर्मल गुणों का वास होता है। शारीरिक रोगों से मुक्ति एवं मानसिक शान्ति प्राप्त होती है। कथा साहित्य में भी न्हवण जल के प्रभाव से कृष्ण द्वारा जरा निवारण, अभयदेवसरि के कुष्ट निवारण तथा रामायण में दशरथ के द्वारा रानियों को शान्ति स्नात्र जल भेजने का दृष्टांत प्रसिद्ध है। इस तरह स्नात्र जल का महत्त्व सुस्पष्ट है। शंका- प्रक्षाल क्रिया करते समय न्हवण लगा सकते हैं? समाधान- कई लोग चालू प्रक्षाल क्रिया में भी प्रक्षालित जल को अंगों पर लगा लेते हैं, यह एक अनुचित क्रिया है। इससे सम्पूर्ण प्रक्षाल जल पसीने आदि से अशुद्ध हो जाता है। इसी के साथ परमात्मा का अविनय एवं अनादर होता हैं। अत: न्हवण जल को किसी जल पात्र में लेकर उसके बाद ग्रहण करना चाहिए। शंका- परमात्म पूजा में उपयोगी केसर-चंदन से श्रावक तिलक लगा सकते हैं? समाधान- नियमत: परमात्म पूजा एवं श्रावक के तिलक हेतु केसर अलग-अलग होनी चाहिए। यदि केशर आदि साधारण या वैयक्तिक द्रव्य से अर्पित हो तो श्रावकों द्वारा उसका उपयोग करने में कोई दोष नहीं है। वहीं यदि
SR No.006260
Book TitleShanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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