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________________ 66...शंका नवि चित्त धरिये! अहोभाव उत्पन्न किए जा सकते हैं। इस प्रकार यदि व्यक्तित्व निर्माण, संस्कार जागरण आदि की अपेक्षा से इन महापुरुषों का अनुकरण किया जाए तो वह उचित है लेकिन यही अनुष्ठान केवल अहं पुष्टि, आडम्बर एवं साज-सज्जा के उद्देश्य से किए जाएं तो सर्वथा अनुचित है। शंका- अठारह अभिषेक करने के बाद ही फोटो-प्रतिमा आदि पूजनीय होते हैं? समाधान- प्रचलित परम्परा के अनुसार तो अठारह अभिषेक के बाद या पहले भी फोटो-प्रतिमा आदि की पूजा विधि की जा सकती है। शास्त्रानुसार जिन प्रतिमाओं या चित्रों का अभिषेक संभव न हो तो उनके प्रतिबिम्बों को दर्पण में देखते हुए उसका अभिषेक करने पर भी वह पूजनीय बन जाते हैं। अभिषेक किए बिना फोटो आदि दर्शनीय तो हो सकते हैं परंतु शास्त्रीय नियमों की एक वाक्यता के लिए अभिषेक किए हुए फोटो की ही पूजा करनी चाहिए। शंका- वर्तमान में बढ़ते पूजन-महापूजन जिनशासन की महिमा वर्धन में कितने सहायक हैं? समाधान- किसी भी धार्मिक या सामाजिक कार्यक्रम का अपना विशिष्ट महत्त्व होता है। उसकी उपयोगिता एवं आवश्यकता से इंकार नहीं है परन्तु उसकी सार्थकता तभी है जब उसका कोई सुपरिणाम सामने आए। यह तभी संभव है जब किसी भी कार्यक्रम के पीछे मात्र भीड़ इकट्ठा करने का उद्देश्य न हो बल्कि जन मानस परिवर्तन की भावना हो। आजकल महोत्सव तो बढ़ रहे हैं किन्तु मर्यादाएँ टूट रही है। पूजन-महापूजन आदि के आयोजन का मुख्य उद्देश्य सांसारिक कामनाओं की पूर्ति रह गया है। पार्श्वनाथ पूजन हो या गौतम स्वामी पूजन या फिर पद्मावती महापूजन सभी आध्यात्मिक उद्देश्यों से हटकर सांसारिक वृत्तियों को बढ़ा रहे हैं। अधिकांश पूजनों में वीतराग प्रभु को गौण कर मात्र देवी-देवताओं का ही गुणगान किया जाता हैं तथा मंत्र आदि महत्त्वपूर्ण विभाग को भी हड़बड़ में फटाफट पूर्ण किया जाता है। इन सबसे लोगों का रूझान वीतराग परमात्मा की तरफ से हटकर देवी-देवताओं की तरफ बढ़ रहा है एवं जन मानस में भ्रान्त मान्यताएँ प्रसरित हो रही है। अत: यह कह सकते हैं कि वर्तमान प्रचलित अधिकांश पूजन-महापूजन जिनशासन एवं जिनेश्वर परमात्मा के कीर्तिवर्धन की अपेक्षा देवी-देवता, विधिकारक एवं संगीतकार
SR No.006260
Book TitleShanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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